टिमटिमाते दीये
By:
Dr. Shashi Motilal
Professor
Department of Philosophy
University of Delhi
दिन, हफ्ते, महीने , यह साल न ऐसे गुजर जाए
किनारे पर बैठे समय यूँ ही न बीत जाए
अभी
सेहमें से मेरे गीत हैं
ठहरे हुए मेरे ख्वाब
कुछ डगमगाते कदम
पर दिल में है आस
कि जल्द ही
यह अँधेरे घटेंगे
निराशा के बादल छटेंगे
फिर सूरज चमकेगा
किस्मत के सितारे दमकेंगे
ख्वाबों की दुनिया सजेगी
यह दूरियां घटेंगी
गलत फहमियां हटेंगी
दोस्ताना फिर जगेगा
आशिआना फिर बनेगा
क्योंकि
टिमटिमाते दीये बुझते नहीं
रास्ते कभी ख़त्म होते नहीं
दिन हफ्ते महीने गुज़ार तो लिए
चंद और महीने सही
120 views0 comments